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सुंदर पत्र

प्रिय मित्र,

आप को मेरा सादर नमस्कार I मैं आपसे जीवन से सम्बंधित कुछ बातें साझा करने हेतु ये पत्र लिख रहा हूँ I आप से आग्रह है के इस पत्र को शांत मन कि अवस्था में धैर्य के साथ पढ़ें I

व्यक्ति का बाहरी दुनियाँ को समझने से ज्यादा आवश्यक अंदर की दुनियाँ को समझना है I इसीलिए दुनियाँ भर का ज्ञान इकट्टा करके भी व्यक्ति भ्रमित रहता है I व्यक्ति के विचार और भावनायें उसे निरंतर अलग-अलग प्रकार के आचरणों, व्यवहारों और क्रिया कलापों में लगाए रखते है और इनके जीवन पे अनुकूल प्रतिकूल प्रभाव पड़ते रहते है l व्यक्ति का मन यदि जीवन के नैसर्गिक बहाव के प्रति समर्पित नहीं है तो वह व्यक्ति को अपनी सिमित धारणाओं के कारण सदैव अप्राकृतिक संघर्ष की ओर अग्रसर करता रहता है I परिणामस्वरूप व्यक्ति सुख-दुःख के चक्र में रह कर पीड़ित होता रहता है I मन (Mind) प्रत्येक व्यक्ति के लिए एक जैसा काम करता है l मन को समझे बिना जीवन के नैसर्गिक बहाव के प्रति जागरूख एवं समर्पित नहीं हुआ जा सकता और स्वयं को जाना भी नहीं जा सकता जो एक पूर्ण, स्वतंत्र एवं संतुष्ट जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक है I

अधिकांश व्यक्ति केवल अपने आस पास हो रही चीज़ों को देख, सुन, सूंघ, स्वाद और स्पर्श कर के दुनिया को समझते है और प्रतिदिन के क्रिया कलापो को करते है I हम स्वयं को भी समझने के लिए इन्ही इन्द्रियों का इस्तेमाल करते है I इन्द्रियां और मन जुड़े हुए है जिसके द्वारा व्यक्ति कुछ भी सीखता और समझता है l यह जाग्रत अवस्था में इस भौतिक दुनिया में किसी भी कार्य को करने के लिए आवश्यक है I इस प्रकार से अपने शरीर और मन के साथ एकात्म हो कर किये गए क्रिया कलाप स्वस्थ अहम् (Ego) से किये गए कार्य है I व्यक्ति अपनी इस प्रकार की सभी क्रियाओ को करने के लिए ब्रम्हांड के नैसर्गिक नियमों के तहत सिमित है I

व्यक्ति के विकास में ब्रम्हांड के इन नैसर्गिक नियमों की जानकारी जो उसे उसके शरीर और मन को प्राकृतिक आचरण और व्यवहार के लिए प्रवित्त करे सम्मिलित है I जो व्यक्ति जितना ही इन नियमों के अनुसार नैसर्गिक व्यवहार और आचरण को बिना मन के हस्तक्षेप के अनायास कर पाता है वह जीवन की पूर्णता को प्राप्त होता जाता है l व्यक्ति मन के काम करने के ढंग को ना समझने के कारण स्वयं की वास्तविकता और आस पास कि चीज़ों, व्यक्तियों और विचारों को हमेशा सिमित धारणाओं (Limited perception) में समझता रहता है और इस वजह से वह संपूर्ण धारणा (Holistic perception) तक नहीं पहुंच पाता l दुर्भाग्यवश हमारी वर्तमान शिक्षा व्यवस्था इसकी पूर्ती में असमर्थ है I शिक्षा में व्यक्ति का स्वयं के मन को समझना भी सम्मिलित होना अनिवार्य है जिसे समझे बिना व्यक्ति उलझ के रह जाता है और असंतुष्ट एवं अपूर्ण जीवन जीने को बाध्य हो जाता है l आज का व्यक्ति पहले के अपेक्षा कहीं ज्यादा भ्रमित और अशिक्षित है I इस कारण अधिकांश लोग समृद्ध जीवन से दूर है I शांति, जो हमारी प्रकृति है, वह केवल तब ही हमसे दूर होती है जब हम केवल अहम् या केवल जाग (Awareness) द्वारा जीवन को अपने अनुसार चलाने का अनावश्यक प्रयास करते है I स्वयं का जीवन को पूर्ण समर्पण, स्वतंत्र एवं संपूर्ण जीवन को प्राप्त कराता है और इसके लिए व्यक्ति को अपने अहम् और चैतन्य दोनों से होने वाले स्वाभाविक कार्यों को करना होता है I

व्यक्ति अपनी चेतना के कारण ही अपने शरीर और मन को जाग्रत अवस्था में सुचारु तरह से चला सकता है I जब कोई व्यक्ति अचेत होता है तो उसे अपने शरीर और मन का ज़रा भी भान नहीं रहता I चेतना या जाग की अवस्था हमेशा नहीं रहती, यह आती जाती रहती है I जैसे की जब व्यक्ति नींद में जाता है या नशे में बेहोश होता है तो वह प्रत्यक्ष रूप से सोया हुआ समझ आता है I जाग्रत अवस्था में भी जाग कभी होती है और कभी नहीं होती I जब होती है तो व्यक्ति पूर्णतः वर्त्तमान में रह पाता है और जब नहीं रहती तो वह भूत या भविष्य के विचारों में रम जाता है l वर्त्तमान में रहते हुए जाग स्वतः ही बनी रहती है जब की भूत या भविष्य में मन के चले जाने पे अहम् भाव स्वतः ही आ जाता है l व्यक्ति का अहम् और जाग में आते जाते रहना स्वाभाविक है I अपने अहम् से लगाव या भागना और साथ ही कम समय या अधिक समय जाग में बीते ऐसा प्रयत्न करना स्वयं से दूरी बनाना है I

व्यक्ति के कष्टों और विकृतियों का कारण उसका अपने अहम् और चेतना में अत्यधिक प्रयत्नों द्वारा दुनिया में कुछ प्राप्त करने की लालसा के वजह से जीवन में घटित होता है I जीवन में किसी भी तरह का आभाव, रिश्तों मे कटुता, शारीरिक एवं मानसिक बीमारियां, धन सम्पदा में दुर्व्यवस्ता या सब कुछ हो कर भी जीवन से असंतुष्टि, स्वयं को ना जानने एवं मन की समझ ना होने के कारण है l व्यक्ति का मन कैसे काम करता है यह दर्शनशास्त्र और मनोविज्ञान नहीं बल्कि अध्यात्म से समझा जा सकता है क्योंकी अध्यात्म के द्वारा ही व्यक्ति स्वयं सत्य को प्रत्यक्ष प्राप्त करता है l वास्तव में, केवल व्यक्ति के स्वयं से दूरी बना कर जीवन जीते जाने के कारण ही वह स्वयं को अप्राकृतिक संघर्ष की ओर लेता जाता है l

व्यक्ति इनसे बाहर आने के लिए ऊपरी तौर पे हाथ पैर मारता रहता है और कुछ और पाने की चाह में दुनिया की दौड़ में भागता भी रहता है I पर यह सब व्यर्थ नहीं है, अगर वह इनसे जीवन को समझ के उसे इसकी पूर्णता में जीने लग जाये I दुर्भाग्यवश अधिकांश लोग ऐसा नहीं कर पाते और दुनिया के मायाजाल में उलझ के अपना पूरा जीवन बिता देते है I जीवन बहुत सरल और बहुत कठिन है I केवल जीवन के नैसर्गिक बहाव के साथ बने रहते हुए जीवन को जीने से ही हम उसके सरल होने पे सरल और कठिन होने पे ससक्त हो जाते है और वह भी बिना किसी प्रयास के I अनंत एवं शाश्वत सत्ता जो जीवन को चलाती है वह बहुत ही बुद्धिमान, संवेदनशील और विनम्र है I वह किसी व्यक्ति के जीवन में कभी कोई ऐसी परिस्तिथि नहीं लाती जिससे पार पाने के लिए पहले ही जीवन ने व्यक्ति को तैयार न किया हुआ हो I व्यक्ति की शारीरिक एवं मानसिक ऊर्जा प्रतिदिन के लिए सिमित है, परन्तु यही ऊर्जा अगर व्यक्ति के जीवन उद्देश्य के प्रति समर्पित हो तो वह असीमित हो जाती है, और न केवल व्यक्ति के लिए अपितु सम्पूर्ण ब्रम्हांड के संतुलन एवं संचालन में भागीदार होती है I

हमे जरुरत बस जीवन के साथ सामंजस्य बिठाने की है I मैं, आपका मित्र, आपको सिनर्जी हीलिंग फाउंडेशन में आमंत्रित करता हूँ जिससे आप भी अपने जीवन में सामंजस्य बना पाए और एक मुक्त, पूर्ण और संतुष्ट जीवन को प्राप्त करें I

संपर्क करे: सिनर्जी हीलिंग फाउंडेशन,
कमल नरेश, 8850069589